हिन्दू तीर्थ स्थल
ब्रिजेश्वरी मंदिर: काँगड़ा शहर से ठीक बाहर स्थित एक मंदिर माता ब्रिजेश्वरी को समर्पित है। अपने अत्यधिक धन-सम्पदा के लिए जाने जाना वाला यह मंदिर उत्तर से आक्रमणकारियों द्वारा सदैव लूट-पाट का केंद्र रहा। 1905 में काँगड़ा शहर में आए भीषण भूकंप में यह मंदिर पूरी तरह से तहस-नहस हो गया और 1920 में इसे दोबारा तीर्थ यात्रा के लिए तैयार कर दिया गया।
ज्वालामुखी मंदिर: यह लोकप्रिय तीर्थस्थल काँगड़ा से 30 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। गर्भगृह के मध्य में एक कुंड है जहाँ ज्वाला अन्नंत काल से प्रज्वलित हो रही है, इसी ज्वाला की माता के रूप में पूजा का विधान है। साल के मार्च-अप्रैल और सितम्बर-अक्टूबर में नवरात्रों के उपलक्ष में रंगारंग मेलों का आयोजन किया जाता है ।
लक्ष्मी नारायण मंदिर: चंबा का लक्ष्मी नारायण मंदिर जो कि मंदिरों का समूह है पुरातन शैली को दर्शाता है । 8वीं शताब्दी में बने मंदिरों में से 6 मंदिर भगवान शिव और विष्णु जी को समर्पित है। इन मंदिरों में लक्ष्मी नारायण मंदिर सबसे पुराना है । बाकि के मंदिर चंबा शहर के चारों ओर स्थापित हैं जो की हरिराय, चम्पावती, बन्सिगोपाल, रामचंद्र, ब्रिजेश्वरी, चामुंडा और नरसिंह जी को समर्पित हैं ।
चौरासी मंदिर: भरमौर में स्थित, 9वीं शताब्दी के मंदिर चंबा घाटी में सबसे मह्त्वपूर्ण प्रारम्भिक हिन्दू मंदिरों में से एक है । पौराणिक कथा के अनुसार राजा साहिल वर्मन की राजधानी भरमौर में 84 (चौरासी) योगियों ने दौरा किया। उन्होंने राजा की विनम्रता और आदर सत्कार से खुश हो कर उन्हें 10 पुत्रों और 1 पुत्री (चम्पावती) का आशीर्वाद दिया। यहाँ के मंदिर का प्रांगन सभी तरह की गतिविधियों का मुख्य केंद्र है ।
छतरी मंदिर : भरमौर (चंबा) से दूर छतरी मंदिर है जिसमें नक्काशीदार लकड़ी के शुरुआती उदाहरण और शक्ति की 8 वीं शताब्दी की पीतल की छवि है।
शिकारी माता (2850 मीटर): शिकारी माता के लिए जन्जेहली और करसोग से पैदल यात्रा संभव है । यह जगह घने जंगलों के बिच में स्थित है यहाँ पर औषधिय जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं। पहाड़ के शिखर पर स्थित यह प्राचीन मंदिर में दो तरह के रास्तों से पहुंचा जा सकता है। मान्यता यह है की शिकारियों ने यहाँ पर अपनी जीत के लिए माँ की पूजा की थी और इसी कारण इस जगह का नाम शिकारी माता पड़ा। यहाँ पर माता की पूजा पत्थर की मूर्ति के रूप में की जाती है। यह मंदिर जो कि पांडवों के समय से अपनी पराकाष्ठा को बनाये हुए है, इस मंदिर के उपर किसी भी तरह की छत नहीं है और जिसे ने भी यह कोशिश की है वो असफल हुआ है।
डूंगरी मंदिर: मनाली में देवदारों के पेड़ों के बीच में स्थित पैगोड़ा शैली का लकड़ी से निर्मित एक मंदिर है। यह मंदिर पांडव पुत्र भीम की पत्नी हडिम्बा को समर्पित है।
त्रिलोकपुर: नूरपुर से 25 कि.मी. जहाँ पर भौरा और भली धाराएँ मिलती है एक प्रमुख तीर्थस्थल है जहाँ पर विभिन्न समुदायों के श्रद्धालुओं द्वारा पूजा जाता है। यहाँ एक हिन्दू मंदिर, एक बौद्ध मट्ठ, सिख गुरुद्वारा और एक मस्जिद है।
त्रिलोकपुर: त्रिलोकपुर लगभग 430 मीटर की ऊंचाई पर 24 किमी दक्षिण-पश्चिम में नाहन, 77-15 'उत्तर और 30'30' पूर्व में एक अलग पहाड़ी पर स्थित है। यह स्थान प्रसिद्ध देवी बाला सुंदरी के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर 1573 में राजा दीप प्रकाश द्वारा बनाया गया था। त्रिलोकपुर गाँव का निर्माण कंवर सुरजन सिंह ने 1867 में किया था ताकि गाँव में पानी की तत्कालीन कमी को दूर किया जा सके। त्रिलोकपुर महान धार्मिक महत्व का स्थान है। इसे मां वैष्णो देवी का बचपन स्थान माना जाता है। देवी महामाया बाला सुंदरी का मंदिर बहुत प्रसिद्ध है और पूरे उत्तर भारत के लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है। त्रिलोकपुर में वर्ष में दो बार अर्थात् चैत्र और अस्विन के महीने में सुदी अष्टमी से चौदस (उज्ज्वल आधे के 14 वें से 14 वें दिन) तक एक महत्वपूर्ण मेला आयोजित किया जाता है। इस अवधि के दौरान लोग आते-जाते रहते हैं लेकिन पहले और अंतिम दिनों में अष्टमी और चौदस को एक विशाल सभा देखी जाती है।